राग केदारा
कबहुँक अंब, अवसर पाइ ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ ॥ १
दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ ॥ २
बूझिहैँ 'सो है कौन', कहिबी नाम दसा जनाइ ।
सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ ॥ ३
जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ ।
तरै तुलसीदास भव तव नाथ-गुन-गन गाइ ॥ ४
कबहुँक अंब, अवसर पाइ ।
मेरिऔ सुधि द्याइबी, कछु करुन-कथा चलाइ ॥ १
दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ ॥ २
बूझिहैँ 'सो है कौन', कहिबी नाम दसा जनाइ ।
सुनत राम कृपालुके मेरी बिगरिऔ बनि जाइ ॥ ३
जानकी जगजननि जनकी किये बचन सहाइ ।
तरै तुलसीदास भव तव नाथ-गुन-गन गाइ ॥ ४