राग बिहाग
है नीको मेरो देवता कोसलपति राम ।
सुभग सरोरुह लोचन, सुठि सुंदर स्याम ॥ १
सिय-समेत सोहत सदा छबि अमित अनंग ।
भुज बिसाल सर धनु धरे, कटि चारु निषंग ॥ २
बलिपूजा चाहत नहीँ, चाहत एक प्रीति ।
सुमिरत ही मानै भलो, पावन सब रीति ॥ ३
देहि सकल सुख, दुख दहै, आरत जन-बंधु ।
गुन गहि, अघ-औगुन हरै, अस करुनासिंधु ॥ ४
देस-काल-पूरन सदा बद बेद पुरान ।
सबको प्रभु, सबमेँ बसै, सबकी गति जान ॥ ५
को करि कोटिक कामना, पूजै बहु देव ।
तुलसिदास तेहि सेइये, संकर जेहि सेव ॥ ६
है नीको मेरो देवता कोसलपति राम ।
सुभग सरोरुह लोचन, सुठि सुंदर स्याम ॥ १
सिय-समेत सोहत सदा छबि अमित अनंग ।
भुज बिसाल सर धनु धरे, कटि चारु निषंग ॥ २
बलिपूजा चाहत नहीँ, चाहत एक प्रीति ।
सुमिरत ही मानै भलो, पावन सब रीति ॥ ३
देहि सकल सुख, दुख दहै, आरत जन-बंधु ।
गुन गहि, अघ-औगुन हरै, अस करुनासिंधु ॥ ४
देस-काल-पूरन सदा बद बेद पुरान ।
सबको प्रभु, सबमेँ बसै, सबकी गति जान ॥ ५
को करि कोटिक कामना, पूजै बहु देव ।
तुलसिदास तेहि सेइये, संकर जेहि सेव ॥ ६
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