राग केदारा
कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी ।
जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्योँ, प्यास प्रेम-पानकी ॥ १
सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करुना-निधानकी ।
निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी ॥ २
बानि बिसारनसील है मानद अमानकी ।
तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी ॥ ३
~~* जय सियाराम *~~
कबहुँ समय सुधि द्यायबी, मेरी मातु जानकी ।
जन कहाइ नाम लेत हौं, किये पन चातक ज्योँ, प्यास प्रेम-पानकी ॥ १
सरल कहाई प्रकृति आपु जानिए करुना-निधानकी ।
निजगुन, अरिकृत अनहितौ, दास-दोष सुरति चित रहत न दिये दानकी ॥ २
बानि बिसारनसील है मानद अमानकी ।
तुलसीदास न बिसारिये, मन करम बचन जाके, सपनेहुँ गति न आनकी ॥ ३
~~* जय सियाराम *~~
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