जनवरी ३१, २०१२
राग गौरी
सहज सनेही रामसोँ तैँ कियो न सहज सनेह ।
तातेँ भव-भाजन भयो, सुनु अजहुँ सिखावन एह ॥ १
ज्योँ मुख मुकुर बिलोकिये अरु चित न रहै अनुहारि ।
त्योँ सेवतहुँ न आपने, ये मातु-पिता, सुत-नारि ॥ २
दै दै सुमन तिल बासिकै, अरु खरि परिहरि रस लेत ।
स्वारत हित भूतल भरे, मन मेचक, तन सेत ॥ ३
करि बीत्यो, अब करतु है करिबे हित मीत अपार ।
कबहुँ न कोउ रघुबीर सो नेह निबाहनिहार ॥ ४
जासोँ सब नातोँ फुरै, तासोँ न करि पहिचानि ।
तातेँ कछु समुझ्यो नहीँ, कहा लाभ कह हानि ॥ ५
साँचो जान्यो झूठको, झूठे कहँ साँचो जानि ।
को न गयो, को जात है, को न जैहै करि हितहानि ॥ ६
बेद कह्यो, बुध कहत हैँ, अरु हौँहुँ कहत हौँ टेरि ।
तुलसी प्रभु साँचो हितु, तू हियकी आँखिन हेरि ॥ ७
~* सीताराम सीताराम *~
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