गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Tuesday, January 10, 2012
श्रीरघुबीरकी यह बानि ..
श्रीरघुबीरकी यह बानि ।
नीचहू सोँ करत नेह सुप्रीति मन अनुमानि ॥ १
परम अधम निषाद पाँवर, कौन ताकि कानि ?
लियो सो उर लाइ सुत ज्योँ प्रेमको पहिचानि ॥ २
गीध कौन दयालु, जो बिधि रच्यो हिँसा सानि ?
जनक ज्योँ रघुनाथ ताकहँ दियो जल निज पानि ॥ ३
प्रकृति-मलिन कुजाति सबरी सकल अवगुन-खानि ।
खात ताके दिये फल अति रुचि बखानि बखानि ॥ ४
रजनीचर अरु रिपु बिभीषन सरन आयो जानि ।
भरत ज्योँ उठि ताहि भेँटत देह-दसा भुलानि ॥ ५
कौन सुभग सुसील बानर, जिनहिँ सुमिरत हानि ।
किये ते सब सखा, पूजे भवन अपने आनि ॥ ६
राम सहज कृपालु कोमल दीनहित दिनदानि ।
भजहि ऐसे प्रभुहि तुलसी कुटिल कपट न ठानि ॥ ७
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