Tuesday, January 10, 2012

श्रीरघुबीरकी यह बानि ..



श्रीरघुबीरकी यह बानि ।
नीचहू सोँ करत नेह सुप्रीति मन अनुमानि ॥ १

परम अधम निषाद पाँवर, कौन ताकि कानि ?
लियो सो उर लाइ सुत ज्योँ प्रेमको पहिचानि ॥ २

गीध कौन दयालु, जो बिधि रच्यो हिँसा सानि ?
जनक ज्योँ रघुनाथ ताकहँ दियो जल निज पानि ॥ ३

प्रकृति-मलिन कुजाति सबरी सकल अवगुन-खानि ।
खात ताके दिये फल अति रुचि बखानि बखानि ॥ ४

रजनीचर अरु रिपु बिभीषन सरन आयो जानि ।
भरत ज्योँ उठि ताहि भेँटत देह-दसा भुलानि ॥ ५

कौन सुभग सुसील बानर, जिनहिँ सुमिरत हानि ।
किये ते सब सखा, पूजे भवन अपने आनि ॥ ६

राम सहज कृपालु कोमल दीनहित दिनदानि ।
भजहि ऐसे प्रभुहि तुलसी कुटिल कपट न ठानि ॥ ७

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