Thursday, January 19, 2012

रघुपति-भगति करत कठिनाई ..


January 17, 2012


रघुपति-भगति करत कठिनाई ।
कहत सुगम करनी अपार जानै सोइ जेहि बनि आई॥ १

जो जेहि कला कुसल ताकहँ सोइ सुलभ सदा सुखकारी ।
सफरी सनमुख जल-प्रवाह सुरसरी बहै गज भारी ॥ २

ज्योँ सर्करा मिलै सिकता महँ, बलतेँ न कोउ बिलगावै ।
अति रसग्य सूच्छम पिपीलिका, बिनु प्रयास ही पावै ॥ ३

सकल दृश्य निज उदर मेलि, सोवै निद्रा तजि जोगी ।
सोइ हरिपद अनुभवै परम सुख, अतिसय द्वैत-बियोगी ॥ ४

सोक मोह भय हरष दिवस-निसि देस-काल तहँ नाहीँ ।
तुलसिदास यहि दसाहीन संसय निरमूल न जाहीँ ॥ ५

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