Wednesday, January 25, 2012

राम राम, राम राम, राम राम, जपत ..


जनवरी २४, २०१२

राग बिहाग

राम राम, राम राम, राम राम, जपत ।
मंगल-मुद उदित होत, कलि मल छल छपत ॥ १

कहु के लहे फल रसाल, बबुर बीज बपत ।
हारहि जनि जनम जाय गाल गूल गपत ॥ २

काल, करम, गुन, सुभाउ सबके सीस तपत ।
राम-नाम-महिमाकी चरचा चले चपत ॥ ३

साधन बिनु सिद्धि सकल बिकल लोग लपत ।
कलिजुग बर बनिज बिपुल, नाम-नगर खपत ॥ ४

नाम सोँ प्रतीति-प्रीति ह्रदय सुथिर थपत ।
पावन किये रावन-रिपु तुलसिहु-से अपत ॥ ५


सीताराम .. सीताराम ..


Ashish Pandey:


पावन प्रेम राम-चरन-कमल जनम लाहु परम।
रामनाम लेत होत, सुलभ सकल धरम ॥ १

जोग, मख, बिबेक, बिरत , बेद-बिदित करम।
करिबै कहँ कटु कठोर, सुनत मधुर, नरम ॥ २

तुलसी सुनि, जानि-बूझि, भूलहि जानि भरम।
तेहि प्रभुको होहि, जाहि सब ही की सरम ॥ ३




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