Friday, January 6, 2012

नाहिनै नाथ! अवलंब मोहि आनकी ..


राग कल्याण


नाहिनै नाथ! अवलंब मोहि आनकी ।
करम-मन-बचन पन सत्य करुनानिधे !
एक गति राम! भवदीय पदत्रानकी ॥

काह-मद-मोह-ममतायतन जानि मन,
बात नहिँ जाति कहि ग्यान-बिग्यानकी ।
काम-संकलप उर निरखि बहु बासनहिँ,
आस नहिँ एकहू आँक निरबानकी ॥

बेद-बोधित करम धरम बिनु अगम अति,
जदपि जिय लालसा अमरपुर जानकी ।
सिद्ध-सुर-मनुज दनुजादिसेवत कठिन,
द्रवहिँ हठजोग दिये भोग बलि प्रानकी ॥

भगति दुरलभ परम, संभु-सुक-मुनि-मधुप,
प्यास पदकंज-मकरंद-मधुपानकी ।
पतित-पावन सुनत नाम बिस्त्रामकृत,
भ्रमित पुनि समुझि चित ग्रंथि अभिमानकी ॥

नरक-अधिकार मम घोर संसार-तम-
कूपकहिँ, भूप! मोहि सक्ति आपानकी ।
दासतुलसी सोउ त्रास नहि गनत मन,
सुमिरि गुह गीध गज ग्याति हनुमानकी ॥

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