गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Friday, January 6, 2012
नाहिनै नाथ! अवलंब मोहि आनकी ..
राग कल्याण
नाहिनै नाथ! अवलंब मोहि आनकी ।
करम-मन-बचन पन सत्य करुनानिधे !
एक गति राम! भवदीय पदत्रानकी ॥
काह-मद-मोह-ममतायतन जानि मन,
बात नहिँ जाति कहि ग्यान-बिग्यानकी ।
काम-संकलप उर निरखि बहु बासनहिँ,
आस नहिँ एकहू आँक निरबानकी ॥
बेद-बोधित करम धरम बिनु अगम अति,
जदपि जिय लालसा अमरपुर जानकी ।
सिद्ध-सुर-मनुज दनुजादिसेवत कठिन,
द्रवहिँ हठजोग दिये भोग बलि प्रानकी ॥
भगति दुरलभ परम, संभु-सुक-मुनि-मधुप,
प्यास पदकंज-मकरंद-मधुपानकी ।
पतित-पावन सुनत नाम बिस्त्रामकृत,
भ्रमित पुनि समुझि चित ग्रंथि अभिमानकी ॥
नरक-अधिकार मम घोर संसार-तम-
कूपकहिँ, भूप! मोहि सक्ति आपानकी ।
दासतुलसी सोउ त्रास नहि गनत मन,
सुमिरि गुह गीध गज ग्याति हनुमानकी ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment