Wednesday, December 28, 2011

जागु,जागु, जीव जड़! जोहै जग-जामिनी ..



जागु,जागु, जीव जड़! जोहै जग-जामिनी । १
देह-गेह-नेह जानि जैसे घन-दामिनि ॥

सोवत सपनेहूँ सहै संसृति-संताप रे ।
बूड्यो मृग-बारि खायो जेवरीको साँप रे ॥ २

कहैँ बेद-बुध, तू तो बूझि मनमाहिँ रे ।
दोष-दुख सपनेके जागे ही पै जाहिँ रे ॥ ३

तुलसी जागेते जाय ताप तिहूँ ताय रे ।
राम-नाम सुचि रुचि सहज सुभाय रे ॥ ४

2 comments:

  1. १९९२ में याद किया था इस पद को

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  2. यह हमारी UP बोर्ड की १२वीं कक्षा की पाट्ठय पुस्तक काव्यांजलि में था। सन् १९९८-९९

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