Thursday, October 3, 2013

जो पै कृपा रघुपति कृपालुकी .. *(विनय-पत्रिका पद सं0 १३७)

08/06/2013

जो पै कृपा रघुपति कृपालुकी, बैर औरके कहा सरै ।
होइ न बाँको बार भगतको, जो कोउ कोटि उपाय करै ॥ १ ॥

तकै नीचु जो मीचु साधुकी, सो पामर तेहि मीचु मरै ।
बेद-बिदित प्रहलाद-कथा सुनि, को न भगति-पथ पाउँ धरै ? ॥ २ ॥

गज उधारि हरि थप्यो बिभीषन, ध्रुव अबिचल कबहुँ न टरै ।
अंबरीष की साप सुरति करि, अजहुँ महामुनि ग्लानि गरै ॥ ३ ॥

सों धौं कहा जु न कियो सुजोधन, अबुध आपने मान जरै ।
प्रभु-प्रसाद सौभाग्य बिजय-जस, पांडवनै बरिआइ बरै ॥ ४ ॥

जोइ जोइ कूप खनैगो परकहँ, सो सठ फिरि तेहि कूप परै ।
सपनेहुँ सुख न संतद्रोहीकहँ, सुरतरु सोउ बिष-फरनि फरै ॥ ५ ॥

हैं काके द्वै सीस ईसके जो हठि जनकी सीवँ चरै ।
तुलसिदास रघुबीर-बाहुबल सदा अभय काहू न डरै ॥ ६ ॥


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