09.07.2013
जानकीनाथ, रघुनाथ, रागादि-ताम-तरणि, तारुण्यतनु, तेजधामं ।
सच्चिदानंद, आनंदकंदाकरं, विश्व-विश्राम, रामाभिरामं ॥ १ ॥
नीलनव-वारिधर-सुभग-शुभकान्त
रत्न-हाटक-जटित-मुकुट-मंडित
श्रवण कुंडल, भाल तिलक, भ्रूरुचिर अति, अरुण अम्भोज लोचन विशालं ।
वक्र-अवलोक, त्रैलोक-शोकापहं, मार-रिपु-ह्रदय-मानस-मरालं ॥ ३ ॥
नासिका चारु सुकपोल, द्विज वज्रदुति, अधर बिंबोपमा, मधुरहासं ।
कंठ दर, चिबुक वर, वचन गंभीरतर, सत्य-संकल्प, सुरत्रास-नासं ॥ ४ ॥
सुमन सुविचित्र नव तुलसिकादल-युतं मृदुल वनमाल उर भ्राजमानं ।
भ्रमत आमोदवश मत्त मधुकर-निकर, मधुरतर मुखर कुर्वन्ति गानं ॥ ५ ॥
सुभग श्रीवत्स, केयूर, कंकण, हार, किंकिणी-रटनि कटि-तट रसालं ।
वाम दिसि जनकजासीन-सिंहासनं कनक-मृदु वल्लिवत तरु तमालं ॥ ६ ॥
अजानु भुजदंड कोदंड-मंडित वाम बाहु, दक्षिण पाणि बाणमेकं ।
अखिल मुनि-निकर, सुर, सिद्ध, गन्धर्व वर नमत नर नाग अवनिप अनेकं ॥ ७ ॥
अनघ, अविछिन्न, सर्वज्ञ, सर्वेश, खलु सर्वतोभद्र-दाताsसमाकं ।
प्रणतजन-खेद-विच्छेद-विद्या
युगल पदपद्म सुखसद्म पद्मालयं, चिह्न कुलिशादि शोभाति भारी ।
हनुमत-हृदि विमल कृत परममंदिर, सदा दासतुलसी-शरण शोकहारी ॥ ९ ॥
(राग रामकली, विनय-पत्रिका पद संo ५१)
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