कहाँ जाउँ, कासोँ कहौँ, कौन सुनै दीनकी
(राग बिलावल)
कहाँ जाउँ, कासोँ कहौँ, कौन सुनै दीनकी ।
त्रिभुवन तुही गति सब अंगहीनकी ॥ १
जग जगदीस घर घरनि घनेरे हैँ ।
निराधारके अधार गुनगन तेरे हैँ ॥ २
गजराज-काज खगराज तजि धायो को ।
मोसे दोस-कोस पोसे, तोसे माय जायो को ॥ ३
मोसे कूर कायर कुपूत कौड़ी आधके ।
किये बहुमोल तैँ करैया गीध-श्राधके ॥ ४
तुलसीकी तेरे ही बनाये, बलि, बनैगी ।
प्रभुकी बिलंब-अंब दोष-दुख जनैगी ॥ ५
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