Tuesday, December 6, 2011

कहाँ जाउँ, कासोँ कहौँ, कौन सुनै दीनकी




(राग बिलावल)


कहाँ जाउँ, कासोँ कहौँ, कौन सुनै दीनकी ।
त्रिभुवन तुही गति सब अंगहीनकी ॥ १

जग जगदीस घर घरनि घनेरे हैँ ।
निराधारके अधार गुनगन तेरे हैँ ॥ २

गजराज-काज खगराज तजि धायो को ।
मोसे दोस-कोस पोसे, तोसे माय जायो को ॥ ३

मोसे कूर कायर कुपूत कौड़ी आधके ।
किये बहुमोल तैँ करैया गीध-श्राधके ॥ ४

तुलसीकी तेरे ही बनाये, बलि, बनैगी ।
प्रभुकी बिलंब-अंब दोष-दुख जनैगी ॥ ५

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