Monday, December 26, 2011

जानकीसकी कृपा जगावती सुजान जीव ..


राग विभास


जानकीसकी कृपा जगावती सुजान जीव,
जागि त्यागि मूढ़ताऽनुरागु श्रीहरे ।
करि बिचार, तजि बिकार, भजु उदार रामचंद्र,
भद्रसिंधु, दीनबंधु, बेद बदत रे ॥ १

मोहमय कुहु-निसा बिसाल काल बिपुल सोयो,
खोयो सो अनूप रुप सुपन जू परे ।
अब प्रभात प्रगट ग्यान-भानुके प्रकाश,
बासना, सराग मोह-द्वेष निबिड़ तम टरे ॥ २

भागे मद-मान चोर भोर जानि जातुधान
काम-कोह-लोभ-छोभ-निकर अपडरे ।
देखत रघुबर-प्रताप, बीते संताप-पाप,
ताप त्रिबध प्रेम-आप दूर ही करे ॥ ३

श्रवण सुनि गिरा गँभीर, जागे अति धीर बीर,
बर बिराग-तोष सकल संत आदरे ।
तुलसिदास प्रभु कृपालु, निरखि जीव जन बिहालु,
भंज्यो भव-जाल परम मंगलाचरे ॥ ४

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