गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Tuesday, December 20, 2011
काजु कहा नरतनु धरि सार्-यो
Dec.17, 2011
काजु कहा नरतनु धरि सार्-यो ।
पर-उपकार सार श्रुतिको जो, सो धोखेहु न बिचार्-यो ॥ १
द्वैत मूल, भय-सूल, सोक-फल, भवतरु टरै न टार्-यो ।
रामभजन-तीछन कुठार लै सो नहिँ काटि निवार्-यो ॥ २
संसय-सिंधु नाम बोहि भजि निज आतमा न तार्-यो ।
जनम अनेक विवेकहीन बहु जोनि भ्रमत नहिँ हार्-यो ॥ ३
देखि आनकी सहज संपदा द्वेष-अनल मन जार्-यो ।
सम, दम, दया, दीन-पालन, सीतल हिय हरि न सँभार्-यो ॥ ४
प्रभु गुरु पिता सखा रघुपति तैँ मन क्रम बिसार्-यो ।
तुलसीदास यहि आस, सरन राखिहि जेहि गीध उधार्-यो ॥ ५
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment