गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Wednesday, December 14, 2011
'बाप! आपने करत. . .
'बाप! आपने करत. . .'
by Chandrasekhar Nair on Tuesday, 6 September 2011 at 09:14
बाप! आपने करत मेरी घनि घटि गई ।
लालची लबारकी सुधारिये बारक, बलि
रावरी भलाई सबहीकी भली भई ॥ १
रोगबस तनु, कुमनोरथ मलिन मनु,
पर-अपबाद मिथ्या-बाद बानी हई ।
साधनकी ऐसी बिधि, साधन बिना न सिधि
बिगरी बनावै कृपानिधिकी कृपा नई ॥ २
पतित-पावन हित आरत-अनाथनिको,
निराधारको आधार, दीनबंधु, दई ।
इन्हमेँ न एकौ भयो, बूझि न जूझ्यो न जयो,
ताहिते त्रिताप-तयो, लुनियत बई ॥ ३
स्वाँग सूधो साधुको, कुचालि कलितेँ अधिक,
परलोक फीकी मति, लोक -रंग-रई ।
बड़े कुसमाज राज ! आजुलौँ जो पाये दिन,
महाराज ! केहू भाँति नाम-लोट लई ॥ ४
राम ! नामको प्रताप जानियत नीके आप,
मोको गति दूसरि न बिधि निरमई ।
खीझिबे लायक करतब कोटि कोटि कटु,
रीझिबे लायक तुलसीकी निलजई ॥ ५
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