गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Saturday, November 26, 2011
"बंदौ रघुपति करुना निधान"
"बंदौ रघुपति करुना निधान" by Chandrasekhar Nair on Saturday, 22 January 2011 at 13:17
बंदौ रघुपति करुना निधान | जाते छुटे भव-भेद-ज्ञान ||
रघुबंश-कुमुद-सुखप्रद निसेस | सेवत पदपंकज अज महेस ||
निज भक्त-ह्रदय-पाथोज-भृंग | लावण्य बपुष अगणित अनंग ||
अति प्रबल मोह-तम-मार्तंड | अज्ञान-गहन-पावक प्रचंड ||
अभिमान-सिन्धु-कुम्भज उदार | सुररंजन, भंजन भूमिभार ||
रागादि-सर्पगन-पन्नगारि | कंदर्प-नाग-मृगपति, मुरारी ||
भव-जलधि-पोत चरनारबिन्द | जानकी-रवन आनंद-कंद ||
हनुमंत-प्रेम-बापि-मराल | निष्काम कामधुक गो दयाल ||
त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम | कह तुलसीदास बिश्राम-धाम ||
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