Saturday, November 26, 2011

सकल सौभाग्यप्रद सर्वतोभद्र-निधि,सर्व, सर्वेश, सर्वाभिरामं ..


जनवरी ८, २०११


सकल सौभाग्यप्रद सर्वतोभद्र-निधि,सर्व, सर्वेश, सर्वाभिरामं |
शर्व-ह्यदि-कंज-मकरंद-मधुकर रुचिर-रूपभूपालमणि नौमी रामं || १

सर्वसुख-धाम गुनग्राम, विश्रामप्रद, नाम सर्वसम्पदमति पुनीतं |
निर्मलं शांत, सुविशुद्ध, बोधतयन, क्रोध-मद-हरन, करुना-निकेतं || २

अजित, निरुपाधि, गोतीतंव्यक्त, विभुमेकमनवद्यमजम द्वितीयं |
प्रकृतं, प्रकट परमात्मा, परमहित, प्रेरकानंत वन्दे तुरीयं || ३

भूधरम सुन्दरम, श्रीवरं, मदन-मद-मथन सौंदर्य-सीमातीरम्यं |
दुष्प्राप्य, दुष्प्रेक्ष्य, दुस्तर्क्य, दुष्पार, संसारहर, सुलभ, मृदुभाव-गम्यं || ४

सत्यकृत, सत्यरत, सत्यवृत, सर्वदा, पुष्ट, संतुष्ट, संकष्टहारी |
धर्मवर्मनी ब्रम्हकर्मबोधैक, विप्रपूज्य, ब्रम्हजनप्रिय, मुरारी || ५

नित्य, निर्मम, नित्यमुक्त, निर्माण, हरी, ज्ञानघन, सच्चिदानंद मूलं |
सर्वरक्षक, सर्वभक्षकाध्यक्ष, कूटस्थ, गूढार्चि, भक्तानुकूलम || ६

सिद्ध-साधक-साध्य,वाच्य-वाचकरूप,मंत्र-जापक-जाप्य,सृष्टि-स्त्रिष्टा |
परमकारन, कंजनाभ,जलदाभतनु,सगुन,निर्गुनसकल दृश्य-दृष्टा ||७

व्योम-व्यापक, विरज, ब्रम्ह, वरदेश, वैकुण्ठ, वामन विमल ब्रम्हचारी |
सिद्ध-वृन्दारकावृन्दवन्दित सदा, खंडी पाखण्ड-निर्मूलकारी || ८

पूर्णानंदसंदोह, अपहरन संमोह-अज्ञान, गुन-सन्निपातं |
बचन-मन-कर्म-गत शरन तुलसीदास त्रास-पातोधि इव कुम्भजातं || ९

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