Monday, November 21, 2011

'नाहिंन आवत आन भरोसो।' by Chandrasekhar Nair on Saturday, 20 August 2011 at 09:54



नाहिंन आवत आन भरोसो।

यहि कलिकाल सकल साधनतरु है स्त्रम-फलनि फरो सो॥


तप, तीरथ, उपवास, दान, मख जेहि जो रुचै करो सो।

पायेहि पै जानिबो करम-फल भरि-भरि बेद परोसो॥


आगम-बिधि जप-जाग करत नर सरत न काज खरो सो।

सुख सपनेहु न जोग-सिधि-साधन, रोग बियोग धरो सो॥


काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह मिलि ग्यान बिराग हरो सो।

बिगरत मन सन्यास लेत जल नावत आम घरो सो॥


बहु मत मुनि बहु पंथ पुराननि जहाँ-तहाँ झगरो सो।

गुरु कह्यो राम-भजन नीको मोहिँ लगत राज-डगरो सो॥


तुलसी बिनु परतीति प्रीति फिरि-फिरि पचि मरै मरो सो।

रामनाम-बोहित भव-सागर चाहै तरन तरो सो॥

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