गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Monday, November 21, 2011
'नाहिंन आवत आन भरोसो।' by Chandrasekhar Nair on Saturday, 20 August 2011 at 09:54
नाहिंन आवत आन भरोसो।
यहि कलिकाल सकल साधनतरु है स्त्रम-फलनि फरो सो॥
तप, तीरथ, उपवास, दान, मख जेहि जो रुचै करो सो।
पायेहि पै जानिबो करम-फल भरि-भरि बेद परोसो॥
आगम-बिधि जप-जाग करत नर सरत न काज खरो सो।
सुख सपनेहु न जोग-सिधि-साधन, रोग बियोग धरो सो॥
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह मिलि ग्यान बिराग हरो सो।
बिगरत मन सन्यास लेत जल नावत आम घरो सो॥
बहु मत मुनि बहु पंथ पुराननि जहाँ-तहाँ झगरो सो।
गुरु कह्यो राम-भजन नीको मोहिँ लगत राज-डगरो सो॥
तुलसी बिनु परतीति प्रीति फिरि-फिरि पचि मरै मरो सो।
रामनाम-बोहित भव-सागर चाहै तरन तरो सो॥
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