गोस्वामी तुलसीदास रचित विनय-पत्रिका के पदों को संजोने हेतु एक प्रयास !
Saturday, November 26, 2011
ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन ..
"ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन" ! - (विनय पत्रिका)
by Chandrasekhar Nair on Saturday, 18 December 2010 at 20:39
ऐसी आरती राम रघुबीरकी करहि मन | हरण दुःखदुंद गोबिंद आनंदघन || १
अचरचर रूप हरी, सरबगत बसत, इति बासना धुप दीजै |
दीप निजबोधगत-कोह-मद-मोह-तम, प्रौड़ अभिमान चितबृत्ति चीजै || २
भाव अतिशय विषाद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम संतोषकारी |
प्रेम-ताम्बूल गत शूल संशय सकल, विपुल भाव-बासना-बीजहारी ||३
अशुभ-शुभकर्म-घृतपूर्ण दश वर्तिका, त्याग पावक, सतोगुण प्रकासम |
भक्ति-बैराग्य-विज्ञान दीपावली, अर्पि नीराजनं जगनिवासम || ४
बिमल हृदि-भवन कृत शांति-पर्यक शुभ, शयन विश्राम श्रीरामराया |
क्षमा-करुना प्रमुख तत्र परिचारिका, यत्र हरी तत्र नहीं भेद-माया || ५
एही आरती-निरत संकटि, श्रुति, शेष, शिव, देवऋषि, अखिलमुनी तत्त्व-दरसी |
करै सोई तरै, परिहरै कामादि मल, वादादि इति अमलमति-दास तुलसी || ६
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