मन मेरे, मानहि सिख मेरी
Sat. 26, 2011
मन मेरे, मानहि सिख मेरी ..
मन मेरे, मानहि सिख मेरी ।
जो निजु भगति चहै हरि केरि ॥ 1
उर आनहि प्रभु-कृत हित जेते ।
सेवहि ते जे अपनपौ चेते ॥ 2
दुख-सुख अरु अपमान-बड़ाई ।
सब सम लेखहि बिपति बिहाई ॥ 3
सुनु सठ काल-ग्रसित यह देही ।
जनि तेहि लागि बिदूषहि केही ॥ 4
तुलसिदास बिनु असि मति आये ।
मिलहिँ न राम कपट लौ लाये ॥ 5
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