Saturday, November 26, 2011

हनुमत-स्तुति: राग धनाश्री (विनय-पत्रिका: गोस्वामी तुलसीदास)



हनुमत-स्तुति: राग धनाश्री (विनय-पत्रिका: गोस्वामीतुलसीदास)
by Chandrasekhar Nair on Tuesday, 14 December 2010 at 13:15

जनवरी ११, २०११

जयति निर्भरानंद-संदोह कपिकेसरी, केसरी-सुवन भुवनैकभर्ता |
दिव्यभूम्यंजना-मंजुलाकर-मणे, भक्त-संतापहर्ता || १

जयति धर्मार्थ-कामापवर्गद विभो, ब्रम्हलोकादि-वैभव-विरागी |
वचन-मानस-कर्म सत्य-धर्मव्रती, जानकीनाथ-चरणानुरागी || २

जयति बिहगेश-बलबुद्धि-बेगाति-मद-मथन, मनमथ-मथन, उर्ध्वरेता |
महानाटक-निपुन, कोटि-कविकुल-तिलक, गानगुन-गर्व-गन्धर्व-जेता || ३

जयति मंदोदरी-केश-कर्षण, विद्यमान दशकंठ भट-मुकुट मानी |
भूमिजा-दु:ख-संजात रोषांतकृत-जातनाजंतु कृत जातुधानी || ४

जयति रामायण-श्रवण-संजात रोमांच, लोचन सजल, शिथिल वाणी |
रामपदपद्म-मकरंद-मधुकर, पाहि, दास तुलसी शरण, शूलपाणी || ५

जनवरी ४, २०११

जयति वात-संजात, विख्यात विक्रम, बृहदबाहू, बलबिपुल, बालधिबिसाला |
जातरूपाचलाकारविग्रह, लसल्लोम विद्युल्लता ज्वालमाला ||१

जयति बालार्क वर-वदन, पिंगल-नयन, कपिश-कर्कश-जटाजूटधारी |
विकट भृकुटी, वज्र दशन नख, वैरी-मदमत्त-कुंजर-पुंज-कुंजरारी ||२

जयति भीमार्जुन-व्यालसूदन-गर्वहर, धनञ्जय-रथ-त्रान-केतु |
भीष्म-द्रोण-कर्णादि-पालित, कालदृक सुयोधन-चामू-निधन-हेतु || ३

जयति गजराजदातार, हन्तार संसार-संकट, दनुज-दर्पहारी |
इति-अति-भीति-गृह-प्रेत-चौरानल व्याधिबाधा-शमन घोर मारी || ४

जयति निगमागम व्याकरण करणालिपि, काव्यकौतुक-कला-कोटि-सिंधो |
सामगायक, भक्त-कामदायक, वामदेव, श्रीराम-प्रिय-प्रेम बंधो || ५

जयति घर्मांशु-संदग्ध-संपाती-नवपक्ष-लोचन-दिव्य-देह्दाता |
कालकलि-पापसंताप-संकुल सदा, प्रनत तुलसीदास तात-माता || ६


दिसम्बर २८, २०१०

जयति मर्कटाधीश, मृगराज-विक्रम, महादेव, मुद-मंगलालय, कपाली |
मोह-मद-क्रोध-कामादि-खल-संकुल, घोर संसार-निशि किरणमाली||१



जयति लसदंजनादितिज, कपि-केसरी-कश्यप-प्रभव, जगदार्तीहर्ता |
लोक-लोकप-कोक-कोकनद-शोकहर, हंस हनुमान कल्याणकर्ता || २



जयति सुविशाल-विकराल-विग्रह,वज्रसार सर्वांग भुजदंड भारी |
कुलिषनख, दशनवर लसत ,बालधिबृहद, वैरी-शस्त्रास्तधर कुधरधारी || ३



जयति जानकी-शोच-संताप-मोचन, रामलक्ष्मणानंद-वारिज-विकासी |
कीष-कौतुक-केलि-लूम-लंका-दहन, दालान कानन तरुण तेजरासी || ४



जयति पातोधि-पाषाण-जलयांकर, यातुधान-प्रचुर-हर्ष-हाता |
दुष्ट रावण-कुम्भकर्ण-पाकारिजित-मर्मभित, कर्म-परिपाक-दाता || ५



जयति भुवनैकभूषण, विभीषणवरद, विहित कृत राम-संग्राम साका |
पुष्पकारूड़ सौमित्री-सीता-सहित, भानु-कुलभानु-कीरति-पताका || ६



जयति पर-यन्त्रमंत्राभिचार-ग्रसन, कारमन-कूट-कृत्यादि-हंता |
शाकिनी-डाकिनी-पूतना-प्रेत-वेताल-भूत-प्रमथ-यूथ-यंता || ७



जयति वेदान्तविद विविध-विद्या-विषद, वेड-वेदांगविद ब्रम्हवादी |
ज्ञान-विज्ञानं-वैराग्य-भाजन विभो, विमल गुन गनती शुकनारदादि || ८



जयति काल-गुन-कर्म-माया-मथन, निश्छलज्ञान,वृत-सत्यरत, धर्मचारी |
सिद्ध-सुरवृंद-योगीन्द्र-सेवित सदादास तुलसी प्रनत भय-तमारी || ९




:: हे हनुमानजी! तुम्हारी जय हो । तुम बंदरों के राजा, सिंहके  सामान पराक्रमी, देवताओं में श्रेष्ट, आनंद और कल्याणके स्थान तथा कपालधारी शिवजी के अवतार हो । मोह, मद, क्रोध, काम आदि दुष्टोंसे व्याप्त घोर संसाररुपी अंधकारमयी रात्रीके नाश करने वाले तुम साक्षात सूर्या हो ।। १  ।।

तुम्हारी जय हो
। तुम्हारा जन्म अंजनीरुपी अदिति (देवमाता) और वानरोंमें सिंहके सामान केसरीरुपी कश्यपसे हुआ है । तुम जगतके कष्टोंको हरनेवाले हो तथा लोक और लोकपालरुपी चकवा-चकवी और कमलोंका शोक नाश करनेवाले साक्षात कल्याण-मूर्ती सूर्या हो ।। २ ।।

तुमारी जय हो 
।  तुम्हारी शरीर बड़ा विशाल और भयंकर है, प्रत्येक अंग वज्रके सामान है, भुजदंड बड़े भारी हैं तथा वज्रके  सामान नख और सुन्दर दांत शोभित हो रहे हैं । तुम्हारी पूँछ बड़ी लम्बी है, शत्रुओंके संहारके लिए तुम अनेक प्रकारके अस्त्र, शस्त्र और पर्वतोंको लिए रहते हो ।। ३ ।।

तुम्हारी जय हो
। तुम श्रीसीताजीके शोक-सन्तापका नाश करनेवाले और श्रीराम-लक्ष्मणके आनंदरुपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेवाले हो । बन्दर-स्वाभावसे खेलमें ही पूँछसे लंका जला देनेवाले, अशोक-वनको उजाड़नेवाले, तरुण तेज के पुंज मध्यानकाल के सूर्यरूप हो ।। ४ ।।

तुम्हारी जय हो ।  तुम समुन्द्रपर
पत्थरका पुल बाँधनेवाले, राक्षसोंके महान आनन्दके नाश करनेवाले तथा दुष्ट रावण, कुम्भकर्ण और मेघनादके मर्म-स्थानोंको तोड़कर उनके कर्मों का फल देनेवाले हो ।। ५ 


तुम्हारी जय हो । तुम त्रिभुवनके भूषन हो, विभीषणको राम-भक्तिका वर देनेवाले हो और रणमें श्रीरामजीके साथ बड़े-बड़े काम करनेवाले हो । लक्ष्मण और सीताजी सहित पुष्पक-विमानपर विराजमान सूर्यकुलके सूर्य श्रीरामजीकी कीर्ति-पताका तुम्ही हो ।। ६ ।।

तुम्हारी जय हो । तुम शत्रुओं द्वारा किये जानेवाले यंत्र-मन्त्र और अभिचार (मोहन उच्चाटन आदि प्रयोगों तथा जादू-टोनों) - को ग्रसनेवाले तथा गुप्त मारण-प्रयोग और प्राणनाशिनी कृत्या आदि क्रूर देवियोंका नाश करनेवाले हो । शाकिनी, डाकिनी, पूतना, प्रेत, वेताल, भूत और प्रमथ आदि भयानक जीवोंके नियंत्रण-करता शासक हो ।। ७ ।।

तुम्हारी जय हो । तुम वेदान्तके जाननेवाले, नाना प्रकारकी विद्याओंमें विशारद, चार वेद और छ: वेदांग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष) - के ज्ञाता तथा शुद्ध ब्रह्मके स्वरुपका निरूपण करनेवाले हो । ज्ञान, विज्ञान और वैराग्यके पात्र हो अर्थात तुम्हीने इनको अच्छी तरहसे जाना है । तुम समर्थ हो । इसीसे शुकदेव और नारद आदि देवर्षि सदा तुम्हारी निर्मल गुणावली गाया करते हैं ।। ८ ।।

तुम्हारी है हो । तुम काल (दिन, घडी, पल आदि), त्रिगुण (सत्त्व, राज, तम), कर्म (संचित, प्रारब्ध, क्रियामाण) और मायाका नाश करनेवाले हो । तुम्हारी ज्ञानरूप व्रत सदा निश्चल है तथा तुम सत्यपरायण और धर्मका आचरण करनेवाले हो । सिद्ध, देवगन और योगिराज सदा तुम्हारी सेवा किया करते हैं । हे भाव-भयरुपी अन्धकारका  नाश करनेवाले सूर्य ! यह दास तुलसी तुम्हारी शरण है ।। ९ ।।


श्री राम जय राम जय जय राम !!
श्री राम जय राम जय जय राम !!
श्री राम जय राम जय जय राम !!
श्री राम जय राम जय जय राम !!
श्री राम जय राम जय जय राम !! 

 



दिसम्बर २१, २०१०

जयति मंगलागार, संसार भारापहर, वानाराकारविग्रह पुरारी |
राम-रोषानल-ज्वाल्माला-मिष ध्वांतचर-सलभ-संहारकारी || १

जयति मरुदंजनामोद-मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव-दु:खैकबंधो |
यातुधानोधत-क्रुद्ध-कालाग्निहर, सिद्ध-सुर-सज्जनानंद-सिंधो || २

जयति रुद्राग्रणी, विश्व-वंद्याग्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती |
सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती || ३

जयति संग्रामजय, रामसंदेहसर, कौशला-कुशल-कल्याणभाषी |
राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि-नरनारी-शीतलकरन कल्पशाषी || ४

जयति सिंघसनासीन सीतारमण, निरखि, निर्भरहरष नृत्यकारी |
राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा तुलसीमानस-रामपुर-विहारी || ५


दिसम्बर १४, २०१०



जयत्यंजनी-गर्भ-अम्बोधि-सम्भूत विधु विबुध-कुल-कैरवानंदकारी |

केसरी-चारु-लोचन-चकोरक-सुखद, लोकगन-शोक-संतापहारी || १



जयति जय बालकपि केलि-कौतुक उदित-चंडकर-मंडल-ग्रासकर्त्ता |

राहू-रवि-शक्र-पवि-गर्व-खर्वीकरण शरण-भयहरण जय भुवन-भर्त्ता || २



जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता |

विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष, विमलगुण, बुद्धि-वारिधि-विधाता || ३



जयति सुग्रीव-ऋक्षादी-रक्षण-निपुण, बालि-बलशालि-बध-मुख्यहेतु |

जलधि-लंघन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनीचर-नगर-उत्पात-केतु || ४



जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका |

लूम लीलाSनल-ज्वालमालाकुलित होलिकाकरण लंकेश-लंका || ५



जयति सौमित्रि-रघुनंदनानंद्कर, ऋक्ष-कपि-कटक-संघट-विधायी |

बद्ध-वारिधि-सेतु अमर-मंगल-हेतु, भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी || ६



जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट, चंड-भुजदंड तरु-शैल-पानी |

समर-तैलिक-यन्त्र तिल-तमीचर-निकर, पेरी डारे सुभट घाली घानी || ७



जयति दशकंठ-घटकर्ण-वारिद-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हंता |

अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट, भूमि-पाताल-जल-गगन-गंता || ८



जयति विश्व-विख्यात बानैत-विरुदावली, विदुष बरनत वेद विमल बानी |

दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी || ९

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