Monday, November 21, 2011

'बाप! आपने करत. . .' by Chandrasekhar Nair on Tuesday, 6 September 2011 at 09:14




बाप! आपने करत मेरी घनि घटि गई ।
लालची लबारकी सुधारिये बारक, बलि
रावरी भलाई सबहीकी भली भई ॥

रोगबस तनु, कुमनोरथ मलिन मनु,
पर-अपबाद मिथ्या-बाद बानी हई ।
साधनकी ऐसी बिधि, साधन बिना न सिधि
बिगरी बनावै कृपानिधिकी कृपा नई ॥

पतित-पावन हित आरत-अनाथनिको,
निराधारको आधार, दीनबंधु, दई ।
इन्हमेँ न एकौ भयो, बूझि न जूझ्यो न जयो,
ताहिते त्रिताप-तयो, लुनियत बई ॥

स्वाँग सूधो साधुको, कुचालि कलितेँ अधिक,
परलोक फीकी मति, लोक -रंग-रई ।
बड़े कुसमाज राज ! आजुलौँ जो पाये दिन,
महाराज ! केहू भाँति नाम-लोट लई ॥

राम ! नामको प्रताप जानियत नीके आप, मोको गति दूसरि न बिधि निरमई ।
खीझिबे लायक करतब कोटि कोटि कटु,
रीझिबे लायक तुलसीकी निलजई ॥

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