Monday, November 21, 2011

'राम! राखिए सरन' by Chandrasekhar Nair on Tuesday, 30 August 2011 at 08:48



राम! राखिए सरन, राखि आए सब दिन।
बिदित त्रिलोक तिहुँ काल न दयालु दूजो,
आरत-प्रनत-पाल को है प्रभु बिन॥ 1

लाले पाले पोषे तोषे आलसी-अभागी-अघी, नाथ! पै अनाथनिसोँ भए न उरिन।
स्वामी समरथ ऐसो, हौँ तिहारो जैसौ-तैसो काल-चाल हेरि होति हिए घनी घिन॥ 2

खीझि-रीझि, बिहँसि-अनख, क्योँ हूँ एक बार 'तुलसी तू मेरो' बलि कहियत किन?
जाहिँ सूल निरमूल, होहिँ सुख अनुकूल,
महाराज राम! रावरी सौँ, तेहि छिन॥ 3

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